Friday, July 25, 2008

yunus khan


रेडियोवाणी पर मैं अकसर वो गीत लेकर आता हूं जो मेरे ज़ेहन में बरसों-बरस से बसे हुए हैं । और ऐसा ही एक गीत जिससे बहुत सारी यादें जुड़ी हुई हैं । मुझे याद है कि पहली बार मैंने ये गीत सुना था उन दिनों में जब 'ब्‍लैक एंड व्‍हाईट' टी वी का दौर हुआ करता था और दूरदर्शन की दोपहर की सभा में पुराने गाने दिखाए जाते थे । उन दिनों स्‍कूल के ज़माने में हमें पुराने गानों का ताज़ा ताज़ा शौक़ लगा था और हमारा संग्रह अपनी जड़ें ही कायम कर रहा था ।
यूनुस ख़ान का हिंदी ब्‍लॉग : रेडियो वाणी ----yunus khan ka hindi blog
मैं गरीबों का दिल, हूं वतन की ज़बां
बेकसों के लिए प्‍यार का आसमां ।।
मैं जो गाता चलूं साथ महफिल चले
मैं जो बढ़ता चलूं साथ मंजिल चले
मुझे राहें दिखाती चलें बिजलियां
मैं ग़रीबों का दिल हूं, वतन की ज़बां ।।
हुस्‍न भी देखकर मुझको हैरान है
इश्‍क़ को मुझसे मिलने का अरमान है
अपनी दुनिया का, हूं मैं हसीं नौजवां
मैं ग़रीबों का दिल, हूं वतन की ज़बां ।।
कारवां जिंदगानी का रूकता नहीं
बादशाहों के आगे मैं झुकता नहीं
चांद तारों से आगे मेरा आशियां
मैं ग़रीबों का दिल, हूं वतन की ज़बां ।।
phir aane laga

phir

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